मजदूर पिता को सहारा देने के लिए मोटरसाइकिल पर दूध बेचती है बेटी, भाई का फर्ज निभा 2 बहनों की कर दी शादी
एक बेटी ने अपने गरीब मजदूर पिता को सहारा देने दूध बेचने जैसे मुश्किल काम को चुन लिया। वो मोटरसाइकिल पर कैन बांध हर सुबह दूध बेचने निकल जाती है और करीब रोजाना 90 लीटर दूध बांटकर लौटती है। लड़की की मेहनत से परिवार फल-फूल रहा है। बेटे का फर्ज निभाने वाली इस लड़की के संघर्ष की कहानी आपको झकझोर देगी।
राजस्थान के भरतपुर के एक गांव भंडोर खुर्द की रहने वाली 19 वर्षीय नीतू शर्मा दिखने में किसी साधारण लड़की की तरह ही है। पर उनकी कहानी असाधारण और लोगो को प्रेरित करने वाली है। नीतू बेहद गरीब परिवार से आती है और उनका सपना टीचर बनना है लेकिन पिता के पास पैसे नहीं थे।
नीते के पिता बनवारी लाल शर्मा एक मज़दूर हैं उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपनी बेटी का पढ़ाई का खर्चा उठा पाएं। नीतू से कह दिया की हम लोगो की आर्थिक स्थिति काफी ख़राब हैं। इसी जज़्बे से नीतू ने फैसला किया की वह खुद आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होगी। किसी भी कीमत पर अपनी पढ़ाई नहीं रोकेंगी और अपने टीचर बनने का सपना पूरा करेंगी।
नीतू के परिवार में 5 बहने व 1 भाई है ,जिनमें से 2 की शादी हो चुकी है ,पिता मिल में मजदूरी करते है लेकिन उनको बहुत ही कम पैसे मिलते है। इसलिए बाकी बचे सभी भाई बहिनों की जिम्मेदारी आज वह अकेले ही उठती हैं। नीतू दूध बेचकर 12 हजार महीना कमा लेती है। इसके अलावा गांव में ही उनकी 10वी में पढ़ने वाली छोटी बहन राधा की परचून की दुकान है जिससे थोड़ी मदद मिल जाती हैं।
उनके दिन की शुरुवात रोज़ सुबह 4 बजे होती है जब वह गांव के अलग अलग किसान परिवारों के यहां से दूध इकट्ठा करती है उसके बाद करीब 60 लीटर दूध को कन्टेनरो में भरकर व बाइक पर लाद कर अपनी बहन के साथ गांव से 5 किलोमीटर दूर शहर में बांटती है।करीब 10 बजे तक दूध बांट लेने के बाद नीतू अपने एक रिश्तेदार के यहां जाकर कपड़े बदलती है और 2 घंटे के कंप्यूटर क्लास में चली जाती है। क्लास खत्म होने के बाद लगभग 12 बजे वह गांव चली जाती है। गांव पहुंच कर वह पढ़ाई में लग जाती हैं और शाम होते ही दुबारा सुबह की तरह लगभग 30 लीटर दूध लेकर शहर चली जाती हैं।
नीतू की मेहनत और लगन देख स्थानीय लोग और अख़बार भी उनकी मदद के लिए आगे आये। खबर छपने के बाद लूपिन संस्था के समाजसेवी सीताराम गुप्ता ने नीतू शर्मा और उनके परिवार को बुलाकर 15 हज़ार का चेक और पढ़ाई के लिए एक कंप्यूटर दिया। सपने देखना तो हर किसी का हक़ है। मुश्किलें भुलाकर हमें कोशिश करनी चाहिए। विजेता वही बनता है जो पूरी शिद्दत के साथ अपने सपनो को पूरा करने के लिये ऐसे समाज को चुनौती देता है। नीतू ने धारा के विपरीत जा कर अपनी एक अलग पहचान बनायीं है। वो सफलता के साथ हौसले का भी एक अच्छा उदाहरण बनी हैं।